खूंटी में फलों का राजा ‘आम’ बना ‘खास’

-मौसम की मार से बर्बाद हुईं बीजू आम की मंजरियां

खूंटी, (हि.स.)। इस वर्ष मौसम की मार ने फलों के राजा ‘आम’ को ‘खास’ बना दिया है। मार्च-अप्रैल के महीने में गर्मी की तपिश और बारिश की बेरूखी के चलते आम की मंजरियां दम तोड़ चुकी हैं। इसका सीधा असर आम की पैदावार पर पड़ना तय है। नतीजन फलों का यह सरताज सामान्य आदमी को नसीब नहीं होगा और लोग इसका लुत्फ नहीं उठा सकेंगे।।

खूंटी जिला बीजू आम ही नहीं, बल्कि आम्रपाली व अन्य किस्म के आमों के उत्पादन में एक अलग स्थान रखता है। पिछले वर्ष 1000 टन से अधिक बीजू आम का उत्पादन हुआ था लेकिन लॉक डाउन के कारण बाजार नहीं मिलने से अधिकतर फसल बर्बाद हो गयी थी। इस वर्ष भी आम के पेड़ों पर मंजर तो लगे थे लेकिन बारिश नहीं होने के कारण गर्मी से सभी मंजर सूख गये।

स्थानीय लोगों का कहना है कि बीजू आम का उत्पादन हर एक साल के अंतराल पर होता है। पिछले वर्ष बीजू आम का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था लेकिन इस वर्ष इसका उत्पादन नहीं के बराबर होने की उम्मीद है। खास बात यह है कि खूंटी जिले के बीजू आम की आपूर्ति रांची, कोलकाता, पुरूलिया, ओडिशा, बिहार व अन्य कई राज्यों में की जाती है। पिछले वर्ष बाजार नहीं मिलने से किसानों को उत्पादन का भरपूर लाभ नहीं मिल पाया था।

हालांकि, आम्रपाली, मालदा व अन्य किस्म के आम का उत्पादन होने की संभावना है लेकिन पिछले वर्ष की तुलना में यह काफी कम होगा। उत्पादन कम होने के कारण आम की कीमतों में काफी उछाल रहने की संभावना है और आम लोगों की पहुंच से बाहर हो सकता है।

आम बागवानी में झारखंड के किसानों के साथ काम कर रही प्रदान संस्था के एक अधिकारी ने बताया कि केंद्र सरकार की योजना मनरेगा के झारखंड के 24 जिलों के 263 प्रखंडों में पिछले पांच वर्षों में 38062 परिवारों ने आम की बागवानी शुरू की है। 31 हजार 816 एकड़ क्षेत्रफल में आम बागवानी हुई है, जिसमें 34 लाख 31 हज़ार 357 आम्रपाली और मल्लिका किस्म के पौधे लगे हैं।

बताया गया कि 20 साल रिसर्च और 300 वेराइटी जांचने के बाद झारखंड की मिट्टी को आम्रपाली की बागवानी के लिए उपयुक्त पाया गया। जिस प्रकार अल्फांसो के लिए महाराष्ट्र, केसर के लिए गुजरात, लंगड़ा के लिए बिहार-उत्तर प्रदेश प्रसिद्ध हैं, उसी प्रकार अब झारखंड आम्रपाली और मल्लिका के लिए जाना जा रहा है। कभी बीजू आम झारखंड की पहचान थे, वहीं अब 24 जिलों में आम्रपाली के बागों से न सिर्फ पर्यावरण सुधर रहा है, बल्कि किसानों को अच्छी आय भी हो रही है।

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