सोशल मीडिया और मृगतृष्णा

सुरेन्द्र किशोरी

आज हर कोई किसी न किसी रूप में सोशल मीडिया के इर्द-गिर्द चहलकदमी करता नजर आता है। दुनिया की बड़ी आबादी विशेषकर नई पीढ़ी सोशल मीडिया के किसी न किसी प्लेटफार्म की उपभोक्ता बन चुकी है। सोशल मीडिया हमारे जीवन पर हावी होता जा रहा है। स्मार्ट होती दुनिया में हर कोई स्मार्ट फोन के सहारे घर अथवा पार्क में अकेला बैठकर भी पूरी दुनिया से जुड़ना चाहता है। प्रसिद्ध होना चाहता है। अपने मनोरंजन अथवा पसन्द आने वाले फीचर्स को देखना और सुनना चाहता है। अब इस बात को किसी भी सूरत में नकारा नहीं जा सकता है कि सोशल मीडिया जीवन का हिस्सा बन चुका है। लेकिन सोशल मीडिया के इस चकाचौंध से दूरी भी बहुत जरूरी है, अन्यथा हम सोशल मीडिया के चक्रव्यूह में कब उलझ कर रह जाएंगें, यह पता ही नहीं चलेगा। सोशल मीडिया के उपयोग की अपनी सीमाएं और मर्यादाएं हैं, जिसका ज्ञान और पालन बहुत ही जरूरी है, नहीं तो घर, परिवार, समाज और देश विघटित हो जाएगा।

डिजिटल प्लेटफॉर्म पर व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, लिंक्डइन, स्नैपचैट, यूट्यूब सहित कई तमाम अनगिनत वेबसाइटें सोशल मीडिया का ही रूप है। जहां हमें एक बार प्रवेश के बाद देखते-देखते सुबह से दोपहर, दोपहर से शाम और शाम से रात कब हो जाती है, इसका पता ही नहीं चलता है। अमूमन देखने में आता है कि प्रतिदिन पांच घंटे से भी अधिक का हमारा अमूल्य समय हाथ से रेत की तरह फिसल कर चला जाता है और हम हाथ मलते ही रह जाते हैं। सोशल मीडिया की मृगतृष्णा में हर कोई वन के मृग की तरह फंसता और भटकता जा रहा है। सोशल मीडिया के अधिक उपयोग के चलते हमारी आंखों और दिमाग पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। सोशल मीडिया की वर्चुअल दुनिया में जकड़े रहने से परिवारों का विघटन, पति-पत्नी में आपसी कलह, डिप्रेशन, मानसिक तनाव के मामले सामने आ रहे हैं। सोशल मीडिया के दुष्परिणाम के रूप में विकृत मानसिकता उभर कर सामने आई है, इससे अपराध भी बढ़ रहे हैं।

साइबर बुलिंग, हैकिंग, हेट स्पीच, डेटा चोरी, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे अपराधों का खतरा बढ़ता जा रहा है। लोग बिना किसी जांच-पड़ताल के मुद्दों को जाति, धर्म, संप्रदाय में बांट कर वास्तविकता और संविधान की मूल भावना को दरकिनार करके असभ्य एवं अमर्यादित भाषा में टिप्पणी करने लगते हैं। युवा किताबों से दूर होकर प्रायोजित खबरों के मकड़जाल में फंसकर भ्रमित हो रहे हैं। वहीं सोशल मीडिया का एक सकारात्मक पक्ष भी है कि सकारात्मक भूमिका से किसी भी व्यक्ति, संस्था, समूह और देश आदि को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक रूप से समृद्ध बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया के माध्यम से आज का युवा जहां अपने करोबार को नई ऊंचाइयां दे रहा है, वहीं आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक, शैक्षिक आदि क्षेत्रों से जुड़े लोग भी अपने सपनों को साकार कर रहे हैं।

सोशल मीडिया का अधिक उपयोग युवाओं को डिप्रेशन की तरफ ले जा रहा है। कितने शेयर और कितने लाइक्स की चिंता युवाओं को मानसिक रूप से प्रभावित करती है। ऑनलाइन ट्रोलिंग आजकल एक आम बात हो गई है। ट्रोलिंग के चलते कितने युवा डिप्रेशन और तनाव का शिकार हो रहे है। आज जहां युवा पीढ़ी को सोशल मीडिया के उपयोग के प्रति पूर्ण रूप से सजग रहना है, वहीं नई पीढ़ी अर्थात बच्चों को भी सोशल मीडिया से दूर रखना इस दौर की सबसे बड़ी चुनौती है। इसका हम सबको विशेषकर अभिभावकों को चिंतन-मंथन करते हुए सामना करना जरूरी हो गया है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी सिडनी के शोधकर्ताओं ने फेसबुक, ट्विटर एवं इंस्टाग्राम जैसी साइटों के उपयोग से चिंता, अवसाद, आत्महत्या के लिए उकसाने वाला विचार, साइबर स्टॉकिंग, ईर्ष्या, सूचना अधिभार एवं ऑनलाइन सुरक्षा की कमी सहित 46 प्रकार के हानिकारक प्रभावों का खुलासा किया है। इसके अलावा लोग सुरक्षा और प्राइवेसी की चिंता से भी परेशान रहते हैं।

वैश्विक महामारी कोरोना लॉकडाउन में बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन होने से सोशल मीडिया में बच्चों की रुचि बढ़ गई है। बच्चे मूल रूप से इतने परिपक्व नहीं होते है कि सोशल मीडिया में उनके लिए क्या हितकर और क्या अहितकर, यह समझ सकें। ऐसे में सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले युवाओं को सचेत होने के साथ-साथ बच्चों का भी विशेष ख्याल रखने की अहम जरूरत है। इंस्टीट्यूट ऑफ गवर्नेंस पॉलिसीज एंड पॉलिटिक्स द्वारा यूथ ऑनलाइन लर्निंग आर्गेनाइजेशन एवं सोशल मीडिया मैटर्स संस्थान की सहायता से किए गए सर्वे का निष्कर्ष है कि बच्चों में इंटरनेट पर प्राइवेसी और सुरक्षा सम्बंधित जागरुकता की कमी है। इसके कारण वे साइबर क्राइम का शिकार बन सकते है। बच्चे अब मैदान में खेलने की बजाय मोबाइल पर खेल रहे हैं। वे सोशल मीडिया के कारण मानसिक रूप से बीमार हो रहे है। सोशल मीडिया का बहुत दुरुपयोग हो रहा है। कई प्रकार के विदेशी वीडियो गेम से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है। सोशल मीडिया बच्चों में गुस्से और तनाव का प्रमुख कारण बनता जा रहा है। ऐसे में अभिभावकों की जिम्मेदारी है की वे बच्चों को इंटरनेट का सही इस्तेमाल समझाएं तथा इंटरनेट संबंधित गतिविधियों पर नजर रखे।

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